31-12-2000  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

बचत का खाता जमा कर अखण्ड महादानी बनो

आज नव युग रचता अपने नव युग अधिकारी बच्चों को देख रहे हैं। आज पुराने युग में साधारण हैं और कल नये युग में राज्य अधिकारी पूज्य हैं। आज और कल का खेल है। आज क्या और कल क्या! जो अनन्य ज्ञानी तू आत्मा बच्चे हैं, उन्हों के सामने आने वाला कल भी इतना ही स्पष्ट है जितना आज स्पष्ट है। आप सभी तो नया वर्ष मनाने आये हो लेकिन बापदादा नया युग देख रहे हैं। नये वर्ष में तो हर एक ने अपना-अपना नया प्लैन बनाया ही होगा। आज पुराने की समाप्ति है, समाप्ति में सारे वर्ष की रिजल्ट देखी जाती है। तो आज बापदादा ने भी हर एक बच्चों का वर्ष का रिजल्ट देखा। बापदादा को तो देखने में समय नहीं लगता है। तो आज विशेष सभी बच्चों के जमा का खाता देखा। पुरूषार्थ तो सभी बच्चों ने किया, याद में भी रहे, सेवा भी की, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी लौकिक या अलौकिक परिवार में निभाया, लेकिन इन तीनों बातों में जमा का खाता कितना हुआ?

आज वतन में बापदादा ने जगत अम्बा माँ को इमर्ज किया। (खाँसी आई) आज बाजा थोड़ा खराब है, बजाना तो पड़ेगा ना। तो बापदादा और मम्मा ने मिलकर सभी के बचत का खाता देखा। बचत करके जमा कितना हुआ! तो क्या देखा? नम्बरवार तो सभी हैं ही लेकिन जितना जमा का खाता होना चाहिए उतना खाते में जमा कम था। तो जगत अम्बा माँ ने प्रश्न पूछा - याद की सब्जेक्ट में कई बच्चों का लक्ष्य भी अच्छा है, पुरूषार्थ भी अच्छा है, फिर जमा का खाता जितना होना चाहिए उतना कम क्यों? बातें, रूह-रूहान चलते-चलते यही रिजल्ट निकली कि योग का अभ्यास तो कर ही रहे हैं लेकिन योग के स्टेज की परसेन्टेज साधारण होने के कारण जमा का खाता साधारण ही है। योग का लक्ष्य अच्छी तरह से है लेकिन योग की रिजल्ट है- योगयुक्त, युक्तियुक्त बोल और चलन। उसमें कमी होने के कारण योग लगाने के समय योग में अच्छे हैं, लेकिन योगी अर्थात् योगी का जीवन में प्रभाव। इसलिए जमा का खाता कोई कोई समय का जमा होता है, लेकिन सारा समय जमा नहीं होता। चलते-चलते याद की परसेन्टेज साधारण हो जाती है। उसमें बहुत कम जमा खाता बनता है।

दूसरा - सेवा की रूह-रूहान चली। सेवा तो बहुत करते हैं, दिनरात बिजी भी रहते हैं। प्लैन भी बहुत अच्छे-अच्छे बनाते हैं और सेवा में वृद्धि भी बहुत अच्छी हो रही है। फिर भी मैजॉरिटी का जमा का खाता कम क्यों? तो रूह-रूहान में यह निकला कि सेवा तो सब कर रहे हैं, अपने को बिजी रखने का पुरूषार्थ भी अच्छा कर रहे हैं। फिर कारण क्या है? तो यही कारण निकला सेवा का बल भी मिलता है, फल भी मिलता है। बल है स्वयं के दिल की सन्तुष्टता और फल है सर्व की सन्तुष्टता। अगर सेवा की, मेहनत और समय लगाया तो दिल की सन्तुष्टता और सर्व की सन्तुष्टता, चाहे साथी, चाहे जिन्हों की सेवा की दिल में सन्तुष्टता अनुभव करें, बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कहके चले जायें, नहीं। दिल में सन्तुष्टता की लहर अनुभव हो। कुछ मिला, बहुत अच्छा सुना, वह अलग बात है। कुछ मिला, कुछ पाया, जिसको बापदादा ने पहले भी सुनाया - एक है दिमाग तक तीर लगना और दूसरा है दिल पर तीर लगना। अगर सेवा की और स्व की सन्तुष्टता, अपने को खुश करने की सन्तुष्टता नहीं, बहुत अच्छा हुआ, बहुत अच्छा हुआ, नहीं। दिल माने स्व की भी और सर्व की भी। और दूसरी बात है कि सेवा की और उसकी रिजल्ट अपनी मेहनत या मैंने किया... मैंने किया यह स्वीकार किया अर्थात् सेवा का फल खा लिया। जमा नहीं हुआ। बापदादा ने कराया, बापदादा के तरफ अटेन्शन दिलाया, अपने आत्मा की तरफ नहीं। यह बहन बहुत अच्छी, यह भाई बहुत अच्छा, नहीं। बापदादा इन्हों का बहुत अच्छा, यह अनुभव कराना - यह है जमा खाता बढ़ाना। इसलिए देखा गया टोटल रिजल्ट में मेहनत ज्यादा, समय एनर्जी ज्यादा और थोड़ा-थोड़ा शो ज्यादा। इसलिए जमा का खाता कम हो जाता है। जमा के खाते की चाबी बहुत सहज है, वह डायमण्ड चाबी है, गोल्डन चाबी लगाते हो लेकिन जमा की डायमण्ड चाबी है ‘‘निमित्त भाव और निर्मान भाव’’। अगर हर एक आत्मा के प्रति, चाहे साथी, चाहे सेवा जिस आत्मा की करते हो, दोनों में सेवा के समय, आगे पीछे नहीं सेवा करने के समय निमित्त भाव, निर्मान भाव, नि:स्वार्थ शुभ भावना और शुभ स्नेह इमर्ज हो तो जमा का खाता बढ़ता जायेगा।

बापदादा ने जगत अम्बा माँ को दिखाया कि इस विधि से सेवा करने वाले का जमा का खाता कैसे बढ़ता जाता है। बस, सेकण्ड में अनेक घण्टों का जमा खाता जमा हो जाता है। जैसे टिक-टिक-टिक जोर से जल्दी-जल्दी करो, ऐसे मशीन चलती है। तो जगत अम्बा बड़ी खुश हो रही थी कि जमा का खाता, जमा करना तो बहुत सहज है। तो दोनों की (बापदादा और जगत अम्बा की) राय हुई कि अब नया वर्ष शुरू हो रहा है तो जमा का खाता चेक करो, सारे दिन में गलती नहीं की लेकिन समय, संकल्प, सेवा, सम्बन्ध-सम्पर्क में स्नेह, सन्तुष्टता द्वारा जमा कितना किया? कई बच्चे सिर्फ यह चेक कर लेते हैं - आज बुरा कुछ नहीं हुआ। कोई को दु:ख नहीं दिया। लेकिन अब यह चेक करो कि सारे दिन में श्रेष्ठ संकल्पों का खाता कितना जमा किया? श्रेष्ठ संकल्प द्वारा सेवा का खाता कितना जमा हुआ? कितनी आत्माओं को किसी भी कार्य से सुख कितनों को दिया? योग लगाया लेकिन योग की परसेन्टेज किस प्रकार की रही? आज के दिन दुआओं का खाता कितना जमा किया?

इस नये वर्ष में क्या करना है? कुछ भी करते हो चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा लेकिन समय प्रमाण मन में यह धुन लगी रहे - मुझे अखण्ड महादानी बनना ही है। अखण्ड महादानी, महादानी नहीं, अखण्ड। मन्सा से शक्तियों का दान, वाचा से ज्ञान का दान और अपने कर्म से गुण दान। आजकल दुनिया में, चाहे ब्राह्मण परिवार की दुनिया, चाहे अज्ञानियों की दुनिया में सुनने के बजाए देखना चाहते हैं। देखकर करना चाहते हैं। आप लोगों को सहज क्यों हुआ? ब्रह्मा बाप को कर्म में गुण दान मूर्त देखा। ज्ञान दान तो करते ही हो लेकिन इस वर्ष का विशेष ध्यान रखो - हर आत्मा को गुण दान अर्थात् अपने जीवन के गुण द्वारा सहयोग देना है। ब्राह्मणों को दान तो नहीं करेंगे ना, सहयोग दो। कुछ भी हो जाए, कोई कितने भी अवगुणधारी हो, लेकिन मुझे अपने जीवन द्वारा, कर्म द्वारा, सम्पर्क द्वारा गुणदान अर्थात् सहयोगी बनना है। इसमें दूसरे को नहीं देखना, यह नहीं करता है तो मैं कैसे करूँ, यह भी तो ऐसा ही है। ब्रह्मा बाप ने सी (See) शिव बाप किया। अगर देखना है तो ब्रह्मा बाप को देखो। इसमें दूसरे को न देख यह लक्ष्य रखो जैसे ब्रह्मा बाप का स्लोगन था ‘‘ओटे सो अर्जुन’’ अर्थात् जो स्वयं को निमित्त बनायेगा वह नम्बरवन अर्जुन हो जायेगा। ब्रह्मा बाप अर्जुन नम्बरवन बना। अगर दूसरे को देख करके करेंगे तो नम्बरवन नहीं बनेंगे। नम्बरवार में आयेंगे, नम्बरवन नहीं बनेंगे। और जब हाथ उठवाते हैं तो सब नम्बरवार में हाथ उठाते हैं या नम्बरवन में उठाते हैं? तो क्या लक्ष्य रखेंगे? अखण्ड गुणदानी, अटल, कोई कितना भी हिलावे, हिलना नहीं। हरेक एक दो को कहते हैं, सभी ऐसे हैं, तुम ऐसे क्यों अपने को मारता है, तुम भी मिल जाओ। कमज़ोर बनाने वाले साथी बहुत मिलते हैं। लेकिन बापदादा को चाहिए हिम्मत, उमंग बढ़ाने वाले साथी। तो समझा क्या करना है? सेवा करो लेकिन जमा का खाता बढ़ाते हुए करो, खूब सेवा करो। पहले स्वयं की सेवा, फिर सर्व की सेवा। और भी एक बात बापदादा ने नोट की, सुनायें?

आज चन्द्रमा और सूर्य का मिलन था ना। तो जगत अम्बा माँ बोली एडवांस पार्टी कब तक इन्तजार करे? क्योंकि जब आप एडवांस स्टेज पर जाओ तब एडवांस पार्टी का कार्य पूरा हो। तो जगत अम्बा माँ ने आज बापदादा को बहुत धीरे से, बड़े तरीके से एक बात सुनाई, वह एक कौन सी बात सुनाई? बापदादा तो जानते हैं, फिर भी आज रूह-रूहान थी ना। तो क्या कहा कि मैं भी चक्कर लगाती हूँ, मधुबन में भी लगाती हूँ तो सेन्टरों पर भी लगाती हूँ। तो हँसते-हँसते, जिन्होंने जगत अम्बा को देखा है उन्हों को मालूम है कि हँसते, हँसते इशारे में बोलती है, सीधा नहीं बोलती है। तो बोली कि आजकल एक विशेषता दिखाई देती है, कौन-सी विशेषता? तो कहा कि आजकल अलबेलापन बहुत प्रकार का आ गया है। कोई के अन्दर किस प्रकार का अलबेलापन है, कोई के अन्दर किस प्रकार का अलबेलापन है। हो जायेगा, कर लेंगे.. और भी तो कर रहे हैं, हम भी कर लेंगे... यह तो होता ही है, चलता ही है... यह भाषा अलबेलेपन की संकल्प में तो है ही लेकिन बोल में भी है। तो बापदादा ने कहा कि इसके लिए नये वर्ष में आप कोई युक्ति बच्चों को सुनाओ। तो आप सबको पता है जगत अम्बा माँ का एक सदा धारणा का स्लोगन रहा है, याद है? किसको याद है? (हुक्मी हुक्म चलाए रहा..) तो जगत अम्बा बोली अगर यह धारणा सब कर लें कि हमें बापदादा चला रहा है, उसके हुक्म से हर कदम चला रहे हैं। अगर यह स्मृति रहे तो हमारे को चलाने वाला डायरेक्ट बाप है। तो कहाँ नजर जायेगी? चलने वाले की, चलाने वाले के तरफ ही नजर जायेगी, दूसरे तरफ नहीं। तो यह करावनहार निमित्त बनाए करा रहे हैं, चला रहे हैं। जिम्मेवार करावनहार है। फिर सेवा में जो माथा भारी हो जाता है ना, वह सदा हल्का रहेगा, जैसे रूहे गुलाब। समझा, क्या करना है? अखण्ड महादानी। अच्छा।

नया वर्ष मनाने के लिए सभी भाग-भाग करके पहुँच गये हैं। अच्छा है हाउस फुल हो गया है। अच्छा पानी तो मिला ना! मिला पानी? फिर भी पानी की मेहनत करने वालों को मुबारक है। इतने हजारों को पानी पहुँचाना, कोई दो-चार बाल्टी तो नहीं है ना! चलो कल से तो चलाचली का मेला होगा। सब आराम से रहे! थोड़ा-सा तूफान ने पेपर लिया। थोड़ी हवा लगी। सब ठीक रहे? पाण्डव ठीक रहे? अच्छा है कुम्भ के मेले से तो अच्छा है ना! अच्छा तीन पैर पृथ्वी तो मिली ना। खटिया नहीं मिली लेकिन तीन पैर पृथ्वी तो मिली ना!

तो नये वर्ष में चारों ओर के बच्चे भी विदेश में भी, देश में भी नये वर्ष की सेरीमनी बुद्धि द्वारा देख रहे हैं, कानों द्वारा सुन रहे हैं। मधुबन में भी देख रहे हैं। मधुबन वालों ने भी यज्ञ रक्षक बन सेवा का पार्ट बजाया है, बहुत अच्छा। बापदादा विदेश वा देश वालों के साथ मधुबनवासियों को भी जो सेवा के निमित्त हैं, उन्हों को भी मुबारक दे रहे हैं। अच्छा। बाकी तो कार्ड बहुत आये हैं। आप सब भी देख रहे हो ना बहुत कार्ड आये हैं। कार्ड तो कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन इसमें छिपा हुआ दिल का स्नेह है। तो बापदादा कार्ड की शोभा नहीं देखते लेकिन कितने कीमती दिल का स्नेह भरा हुआ है, तो सभी ने अपने-अपने दिल का स्नेह भेजा है। तो ऐसे स्नेही आत्माओं को विशेष एक एक का नाम तो नहीं लेंगे ना! लेकिन बापदादा कार्ड के बदले ऐसे बच्चों को स्नेह भरा रिगार्ड दे रहे हैं। याद पत्र, टेलीफोन, कम्प्युटर, ई-मेल, जो भी साधन हैं उन सभी साधनों से पहले संकल्प द्वारा ही बापदादा के पास पहुँच जाता है फिर आपके कम्प्युटर और ई-मेल में आता है। बच्चों का स्नेह बापदादा के पास हर समय पहुँचता ही है। लेकिन आज विशेष नये वर्ष के कईयों ने प्लैन भी लिखे हैं, प्रतिज्ञायें भी की हैं, बीती को बीती कर आगे बढ़ने की हिम्मत भी रखी है। सभी को बापदादा कह रहे हैं बहुत-बहुत शाबास बच्चे, शाबास!

आप सभी खुश हो रहे हैं ना! तो वह भी खुश हो रहे हैं। अभी बापदादा की यही दिल की आश है कि - ‘‘दाता का बच्चा हर एक दाता बन जाओ।’’ माँगो नहीं यह मिलना चाहिए, यह होना चाहिए, यह करना चाहिए। दाता बनो, एक दो को आगे बढ़ाने में फ्रीखदिल बनो। बापदादा को छोटे कहते हैं कि हमको बड़ों का प्यार चाहिए और बाप छोटों को कहते हैं कि बड़ों का रिगार्ड रखो तो प्यार मिलेगा। रिगार्ड देना ही रिगार्ड लेना है। रिगार्ड ऐसे नहीं मिलता है। देना ही लेना है। जब आपके जड़ चित्र देते हैं। देवता का अर्थ ही है देने वाला। देवी का अर्थ ही है देने वाली। तो आप चैतन्य देवी देवतायें दाता बनो, दो। अगर सभी देने वाले दाता बन जायेंगे, तो लेने वाले तो खत्म हो जायेंगे ना! फिर चारों ओर सन्तुष्टता की, रूहानी गुलाब की खुशबू फैल जायेगी। सुना!

तो नये वर्ष में न पुरानी भाषा बोलना, जो पुरानी भाषा कई-कई बोलते हैं जो अच्छी नहीं लगती है, तो पुराने बोल, पुरानी चाल, पुरानी कोई भी आदत से मजबूर नहीं बनना। हर बात में अपने से पूछना कि नया है! क्या नया किया? बस सिर्फ 21 वीं सदी मनाना है, 21 जन्म का सम्पूर्ण वर्सा 21 वीं सदी में पाना ही है। पाना है ना! अच्छा।

सेवा में गुजरात का टर्न है - गुजरात की सेवा तो मशहूर है ना? अच्छा है गुजरात की विशेषता है कि जितना पास में है, उतना हर कार्य में सहयोग देने में एवररेडी बन जाते हैं। गुजरात वालों को सिर्फ बापदादा एक उल्हना देते हैं, बतायें क्या? जितना पास है ना, उतने कोई माइक्स पास में नहीं आये हैं। गुजरात की मिनिस्ट्री बहुत अच्छी है। गुजरात को मिनिस्ट्री में से कोई ग्रुप तैयार करना चाहिए, हो सकता है। जो मिलकर एक हैदराबाद, एक गुजरात, कनार्टक में भी हैं, कोई ऐसे सम्बन्ध-सम्पर्क में लायें, हैं सम्बन्ध-सम्पर्क में लेकिन सेवा में लगें। जब काम पड़ता है तब उसी थोड़े टाइम के लिए तो मददगार बन जाते हैं, लेकिन सेवा में निमित्त बनते रहें, इतने समीप और बेधड़क हो। बापदादा ने जो पहले कहा है, अभी वर्ष पूरा हो रहा है लेकिन बापदादा के पास वह रिजल्ट आई नहीं है। जगह-जगह पर बिखरे हुए अच्छे-अच्छे आई.पी. हैं। मधुबन में भी बहुत आये हैं, सेवाकेन्द्रों पर भी बहुत आते रहते हैं लेकिन उन्हों का संगठन नहीं हुआ है। जोन-जोन में भी संगठन हो जाए, उन्हों में हिम्मत आवे आगे बढ़ने की। इण्डीविज्युअल तो सेवा करते रहते हो लेकिन आवाज तब होगा जब एक-दो के संगठन में आयेंगे। जैसे फारेन से ग्रुप बनके आया ना! चाहे छोटा आया, चाहे बड़ा आया लेकिन ग्रुप बनके आया। और ग्रुप बनने में ताकत, हिम्मत आती है। अच्छा। गुजरात वालों को सेवा की मुबारक है।

विदेश के यूथ की रिट्रीट ज्ञान सरोवर में चल रही है

अच्छा है, यूथ ग्रुप का भी बापदादा ने समाचार सुना। अच्छा पुरूषार्थ और विधि बहुत अच्छी अपनाते हैं। फारेन के यूथ खड़े हो जाओ। अच्छा। जो यहाँ अभ्यास पक्का किया है, वह वहाँ भी कायम रहेगा ना! या थोड़ा कम हो जायेगा? बोलो! अपने देश में जाके भी यह अभ्यास जो 5 सेकण्ड का किया वह रहेगा? (हाथ हिला रहे हैं) अच्छा, प्रोग्राम बहुत अच्छा बनाया है। अटेन्शन भी अच्छा रखा है। अभी सिर्फ इसको बढ़ाते रहना, कम नहीं करना। दूसरे वर्ष आओ तो यही रिजल्ट ले आओ कि आगे से आगे हैं। कम नहीं हुआ है। बाकी अच्छा है, आते भी हिम्मत से हैं, प्यार से हैं। इतना दूर-दूर से आते हैं तो यह प्यार है तभी आते हैं। बापदादा ने तो कहा ही है कि आल वर्ल्ड से यूथ ग्रुप को इकट्ठा कर गवर्मेन्ट के सामने लाना है कि यह यूथ स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन कर रहे हैं। ऐसा संगठन भी तैयार हो जायेगा। फारेन में कितने देशों में सेवा है? (75) और इन्डिया में? इन्डिया के एक एक स्टेट का हो और एक-एक देश का एक हो। तो एक-एक देश का यूथ, चाहे विदेश, चाहे देश सभी का एक-एक ही हो भले। लेकिन इतने सब देशों के यूथ अपने यूथ ग्रुप का जो ओथ लेते हैं, प्रामिस करते हैं वह ले आवें और गवर्मेन्ट के आगे रखें तो कितनी अच्छी सेवा हो सकती है। गाँव वाले भी हों, देश वाले भी हो तो फारेन वाले भी हों। सब तरफ के यूथ इकट्ठे हों, तो कितनी अच्छी सेवा हो जायेगी। ऐसे ही हर देश का अपने हिसाब से अच्छा प्रसिद्ध आई.पी. हो, वी.आई.पीज की तो बात छोड़ो। जो हिम्मत वाला हो और सभी देशों के इकट्ठे हों। गवर्मेन्ट को बतायें कि हमारे देश में कितनी आत्माओं को फायदा है। अच्छा।

विदेश के छोटे बच्चों की भी रिट्रीट है - छोटे-छोटे बच्चे भी आये हैं। हाँ खड़े हो जाओ। अच्छी ट्रेनिंग ली? अच्छी ट्रेनिंग हुई? अच्छे बच्चे बनेंगे ना!

टीचर्स से - सभी टीचर्स ने ‘कल्चर आफ पीस’ की मेहनत की है। अच्छी सेवा की है। आत्माओं को परिचय मिला, कोई सम्बन्ध-सम्पर्क में भी आये, सन्देश भी कई आत्माओं को मिला। चाहे अभी आये या नहीं आये लेकिन समय आने पर याद आयेगा तो हमें भी पर्चा मिला था और ढूँढ़ेंगे आपको कि वह सफेद वस्त्र वाली बहिनें, कौन सी थी जिन्होंने पर्चे दिये थे लेकिन हमने नहीं सुना। वह भी समय आयेगा, जिन आत्माओं में बीज डाला है, उनका फल निकलेगा। प्राइज तो थोड़ों को दी जाती है, उमंग-उत्साह बढ़ाने के लिए। लेकिन जिन्होंने ने भी जितनों की भी सेवा की है, उन सबकी सेवा आत्माओं तक भी पहुँची और बाप के पास तो जमा होती ही है। प्राइज तो एक को मिलेगी लेकिन सहयोग तो बहुतों ने, टीचर्स ने स्टूडेण्टस ने बहुत दिया है, इसलिए सभी सेवा करने वालों को बापदादा की तरफ से स्नेह की सौगात है ही है। ऐसे नहीं समझना हमको तो गिफ्ट मिली नहीं, हमको दिल का स्नेह मिला। अच्छा।

आज बापदादा को जो रेलवे में जाकर रिसीव करते हैं रात को ठण्डक में, गर्मी में वह याद आ रहे हैं, वह बैठे हैं? जो रेलवे स्टेशन पर जाकर रिसीव करते हैं वह यहाँ हैं या अभी भी स्टेशन पर हैं? सेवा में बिजी रहते हैं। उन्हों की भी सेवा अथक है। आप सबको अच्छी तरह से लाते हैं ना! पहुँच जाते हो ना! विशेष मैजॉरिटी सभी संगम भवन में रहते हैं ना। तो उन सभी अथक सेवाधारियों को भी बापदादा याद करते हैं। वैसे तो सभी मधुबन की डिपार्टमेंट मेहनत तो बहुत करते हैं। इसीलिए सभी मधुबन डिपार्टमेंट वालों को, चाहे शान्तिवन वालों को, चाहे पाण्डव भवन वालों को, चाहे आस-पास रहने वालों को, ज्ञान सरोवर वालों को, हॉस्पिटल वालों को सभी सेवाधारियों को बापदादा मुबारक देते हैं। अच्छा। यह भी (सामने कैबिन में बैठे हुए भाईयों को देखकर) देखो कितनी सेवा कर रहे हैं। बहुत अच्छा है। (एयरपोर्ट वाले, आवास निवास वाले भी बहुत अथक सेवा करते हैं) इसीलिए कहा सभी डिपार्टमेंट वालों को। हर एक की सेवा बहुत अच्छी है। जो स्वच्छता रखते हैं, उन्हों का भी काम कम नहीं है। सब डिपार्टमेंन्ट्स का काम अपना-अपना है। और डिपार्टमेंन्टस नहीं होती तो आप इतने सभी कैसे अच्छी तरह रहते। इसलिए बापदादा नाम नहीं ले रहे हैं लेकिन हर एक डिपार्टमेंट नम्बरवन अपने को समझे। अच्छा।

चारों ओर के नव युग अधिकारी श्रेष्ठ आत्माओं को, सर्व बच्चों को, जो सदा हर कदम में पदम जमा करने वाली आत्मायें हैं, सदा अपने को ब्रह्मा बाप समान सर्व के आगे सैम्पुल बन सिम्पुल बनाने वाली आत्मायें, सदा अपने जीवन में गुणों को प्रत्यक्ष कर औरों को गुणवान बनाने वाले, सदा अखण्ड महादानी, महा सहयोगी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

जगदीश भाई से - ठीक है। (चलती का नाम गाड़ी है) जीवन को बाप हवाले तो आदि से कर ही लिया है। जीवन में जब तक भी है तक तक सेवा तो कर रहे हो और करते ही रहेंगे। जमा हो रहा है। अभी बापदादा जो भी महारथी हैं, सभी महारथी बैठे हैं ना, उन महारथियों को कौन सी सेवा करनी है, वह बताते हैं। सेवायें तो सब कर रहे हैं और आप सबने तो अभी तक जो दूसरे सेवायें कर रहे हैं, वह बहुत कर ली है, अभी तो दूसरे भी आप लोगों द्वारा बहुत होशियार हो गये हैं, अभी महारथियों को और नई सेवा करनी चाहिए। ठीक है ना! अभी आप लोगों को जो सेवा करनी है उनमें इनकी (कानों की) जरूरत नहीं है। (कम सुन रहा है) अब आप लोगों की सेवा है, वायब्रेशन्स द्वारा आत्माओं को समीप लाना। आपस में तो होना ही है। आपसी स्नेह औरों को वायब्रेशन द्वारा खींचेगा। अभी आप लोगों को यह साधारण सेवा करने की आवश्यकता नहीं है। भाषण करने वाले तो बहुत हैं, लेकिन आप लोग हर एक आत्मा को ऐसी भासना दो जो वह समझें कि हमको कुछ मिला। ब्राह्मण परिवार में भी आपके संगठन के वायब्रेशन द्वारा निर्विघ्न बनाना है। मन्सा सेवा की विधि को और तीव्र करो। वाचा वाले बहुत हैं। मन्सा द्वारा कोई न कोई शक्ति का अनुभव हो। वह समझें कि इन आत्माओं द्वारा यह यह शक्ति का अनुभव हुआ। चाहे शान्ति का हो, चाहे खुशी का हो, चाहे सुख का हो, चाहे अपने-पन का। तो जो भी अपने को महारथी समझते हैं उन्हों को अभी यह सेवा करनी है। सभी अपने को महारथी समझते हो? महारथी हैं? अच्छा है। (जगदीश भाई ने एक गीत गाया)

अभी औरों को भी आप द्वारा ऐसा अनुभव हो। बढ़ता जायेगा। इससे ही अभी ऐसी अनुभूति शुरू करेंगे तब साक्षात्कार शुरू हो जायेगा।

दादी जानकी से - फिर मानो यहाँ आप भारत में मिलती हो और फारेन में चली जाती हो तो फारेन में जाने के बाद आपके फरिश्ते रूप का साक्षात्कार होगा कि यह कौन सी देवी थी जिसने मेरे को एक सेकण्ड के लिए भी शान्ति का अनुभव कराया, सुख का कराया... इससे ही साक्षात्कार शुरू हो जायेगा। यह औरों को भी पाठ पढ़ाओ। हर बात में कहें बाबा-बाबा-बाबा, ‘मैं’ नहीं लायें, तभी साक्षात्कार शुरू हो। यह मैं पन आ जाता है इसलिए लोग भी ब्रह्माकुमारियों की महिमा करते हैं, बाप की कम करते हैं। (नाम ही ब्रह्माकुमारी है) लेकिन पहले ब्रह्मा नाम है। अच्छा।

(जगदीश भाई से) शरीर को चला रहे हैं ना, चलाते चलो। अच्छा। लाइट रहना ही अच्छा है। सभी पाण्डव भी मददगार हैं। पाण्डवों का भी प्यार है, दादियों का भी प्यार है। (पाण्डवों से भी ज्यादा दादियों का है) कोई ऐसी घड़ी आ जायेगी जो असम्भव से सम्भव हो जायेगा। अच्छा। सभी ने सुना ना!

(जगदीश भाई की सेवा में दिल्ली की साधना बहन हैं, उनसे बापदादा मिल रहे हैं):-

सेवा का भाग्य मिलना भी बहुत बड़ी बात है, दिल से सेवा करते चलो। कर रही हो, करते चलो।

अव्यक्त बापदादा ने कल्चर आफ पीस की सेवाओं में प्राइज विनर को गिफ्ट दी तथा रात्रि 12 बजे के पश्चात नये वर्ष में सभी बच्चों को 2001 वर्ष की मुबारक दी।

इस समय पुराने और नये वर्ष का संगम समय है। संगम समय अर्थात् पुराना समाप्त हुआ और नया आरम्भ हुआ। जैसे बेहद के संगमयुग में आप सभी ब्राह्मण आत्मायें विश्व-परिवर्तन करने के निमित्त हो, ऐसे आज के इस पुराने और नये वर्ष के संगम पर भी स्व-परिवर्तन का संकल्प दृढ़ किया है और करना ही है। जो बताया हर सेकण्ड अटल, अखण्ड महादानी बनना है। दाता के बच्चे मास्टर दाता बनना है। पुराने वर्ष को विदाई के साथ-साथ पुरानी दुनिया के लगाव और पुराने संस्कार को विदाई दे नये श्रेष्ठ संस्कार का आह्वान करना है। सभी को अरब-खरब बार मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।

देहली भवन प्रति

देहली दरबार से सभी को प्यार है ही क्योंकि अनेक बार राज्य किया है और आज नहीं लेकिन कल राज्य करना है, इतने नजदीक पहुँच गये हो। इसलिए जो भी दिल्ली की सेवा करने के निमित्त हैं और निमित्त बनना ही है, उन सभी सेवाधारियों को आप सभी सब प्रकार का सहयोग दे आगे बढ़ा रहे हो और आगे बढ़ाते रहना है क्योंकि राजधानी तैयार करनी है इसलिए इनएडवांस देहली सेवा के स्थान को मुबारक हो, मुबारक हो।

इंजीनियर्स या जो भी सेवा के निमित्त हैं अच्छी सेवा कर रहे हैं इसीलिए बापदादा सबके मुख में गुलाबजामुन दे रहे हैं और जब आप सबके सहयोग से तैयार हो जायेगा तो आप सबके भी मुख में गुलाबजामुन आयेगा। अच्छा। ओम् शान्ति।